Ramayan in Hindi

रामायण 




रामायण

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रामायण एक गाथा 



नमस्कार मित्रों , 

रामायण शब्द से तो आप सभी भली भांति परिचित होंगे अगर नही भी जानते तो आइए मैं सुनाता हूँ कुछ कही सुनाई लिखी बाते । रामायण की कथा तब की है जब पृथ्वी पर त्रेता काल चल रहा था और रावण त्राहिमाम मैच कर रखा था ऐसे में सभी मुनि महात्माओं ने प्रभु श्री हरि विष्णु जी से प्रार्थना किया कि प्रभु अब आप ही हमारी रक्षा करे रावण और दानवों ने त्राहिमाम मैच रखा है जहाँ तहाँ पहुच कर हमारे यज्ञ को पूरा होने आए रोक देते है ऐसे में पाप बढ़ जाएगा और पुण्य का लोप हो जाएगा ।यह बात सुन कर श्री हरि विष्णु जी ने कहा मैं राम के स्वरूप में पृथ्वी पर राजा दशरथ के घर अवतरित होएंगा समय आने पर और दानवों के साथ रावण का भी अंत करूँगा । तत्पश्चात प्रभु अंतर्ध्यान हो गए और कई वचनों को पूरा करने हेतु उन्होंने श्री दसरथ जी के घर राम स्वरूप में अवतरित हुए और माता लक्ष्मी सीता के स्वरूप में जनक के राजा श्री जनक जी के राज्य में धरती मैया के गोद से जहा की भूमि बंजर हो चुकी थी रावण के द्वारा मुनीयों साधुओं के रक्त को जमीन में दफनाने की वजह से वहाँ से जनक जी के हांथो हाल जोतते समय मिली जिन्हें जनक जी ने अपनी बेटी मान अपने राज्य महल ले गए जहाँ सीता मैया शिव जी के धनुष्य को अपने बाए हाँथ से उठा कर प्रत्येक दिन साफ सफाई करती थी जबकि उस धनुष्य को कोई बल साली भी उठा नही पाते थे ।








इधर राम जी अपनी लीला दिख रहे थे दसरथ जी के द्वार में अपने तीन और भाईयो के संग जो इस प्रकार थे  सबसे पहले राम , उनके बाद भारत फिर लक्ष्मण अंत मे शत्रुघ्न सभी भी एक पर एक ज्ञान वीर तपाश्वि भ्राता राम के अनुयायी थे और राम भी अपने भाईयों से बहुत प्रेम करते थे । तीनो भाइयो में लक्ष्मण सबसे अधिक प्रिय गए प्रभु राम के चुकी लक्षमण जी शेषा अवतार थे तो उनमें क्रोध भी अत्यंत थी । जब थोड़े बड़े हुए तो पिता ने ज्ञान प्राप्ति के लिए आश्रम भेज दिया जहा गुरु जी ने शिक्षा प्रदान की फिर उपनयन संस्कार सब पूर्ण कर के तत्पश्चात चारो भाई राजमहल लौट आये । एक दिन मुनि श्रेष्ठ दानवो से परेशान हो कर  महाराज के समक्ष आये राम जी को अपने साथ ले जाने परंतु पहले तो दसरथ जी नही माने अंततः उन्होंने मुनि जी के कहने पर ले जाने की स्वीकृति दे दी जिसके पश्चात राम एवं लक्षमण को गुरु जी ले कर अपने आश्रम चले गए जहाँ प्रभु दोनो भाइयों ने मिल कर राक्षसों को अंत किया उसके बाद जनक जी के राज्य आमंत्रण मिलने की वजह से चल पड़े जहा जा कर विष्णु अवतार राम जी ने शिव जी के धनुष्य पर प्रत्यंचा चढ़ा कर टुकड़े कर दिए नियति के अनुसार उसके बाद भगवान परशुराम के क्रोध अग्नि को प्रभु ने शांत किया और माता सीता से धर्म अनुसार विवाह किए पिता और अपने समस्त बन्धुओ के समक्ष चुकी माता सीता के पिता जनक जी की इक्षा थी सभी बहनी का विवाह एक साथ ही करे तो राम जी के साथ बांकी भइयो का भी विवाह सही मंडप में सम्पन हुआ ।









अब समय राम के राज्य अभिषेक की आयी तो विधि अनुसार माता केकयी ने महाराज से अपने दोनो वरदान को मंगा जिसमे उन्होंने कहा भरत को राज्य और राम को चौदह वर्ष का वनवास जिसके फल स्वरूप राम मत सीता और लखन संग वन को निकल गए जिस दौरान प्रभु दोनो भाइयों ने मिल कर कई दानव का वध किया और सूर्पनखा का नाक भी लक्ष्मण जी ने काटा जिससे गुस्साए रावण ने माता सीता का हरण किया और मया को बचाने के दौरान महात्मा जटायु स्वर्ग सिधार गए  । सीता जी को ढूंढते ढूंढते राम टिसकिन्धा के वन में पहुच गए जहाँ उनकी भेंट हनुमान जी और सुग्रीव जी से हुई और बाली का राम जी के हाँथों अंत हुआ  फिर सीता जी को ढूंढने के कार्य वानर सेना के सहायता से पूर्ण हुआ समुद्र पार करते समय हनुमान जी को उनकी शक्तियां याद दिलवाई गयी जिसके वजह से हनुमान जी माता सीता की सुधि प्रभु तक लाने में सकचं हो सके।अब राम वानरों के सेन के साथ लंका की ओर चल पड़े जहाँ राम जी को राम सेतु का निर्माण करवाना परा और उसके पश्चात राम रावण युद्ध प्रारम्भ हुआ चुकी रावण ज्ञानी था तो महादेव का वरदान भी प्राप्त था जिसकी वजह से राम जी के लिए सरल नही लग रहा था अंत मे विभीषण जी के सुझाव अनुसार राम जी ने रावण का अंत किया नाभि में छिपे नाभि कलश को भस्म करके और सीता जी को अयोध्या चौदह वर्ष पूर्ण होने पर ले चले जहाँ पुष्पक विमान की सहायता से भरत जी के निर्धारित समय से पहले पहुंच गए और राज्य गद्दी संभाले ।









इसी दौरान हनुमान जी से पूछा गया क्या उनके शरीर मे राम जी का वास है तो उन्होंने अपने सीने को चीर कार्ड ईख दिया ।परंतु होने को कौन ताल सकता है समाज के घिनौने विचार से प्रभावित होकर प्रभु ने सीता जी का त्याग कर दिए जिसके उलरन्त माता सीता वाल्मीकि जी के आश्रम में उनकी लूटी बन कर रहने लगी इशी दौरान माता सीता के गर्व से राम जी के पुत्र ने जन्म लिया जिसका नाम लव रखा गया । एक दिन गुरु जी ने लव को न देख कर घबराहट में कुश से एक बच्चे का सृजन कर दिया जिनका नाम बाद में कुश रखा गया । अश्वमेघ यज्ञ के दौरान घोड़े को पकड़ने की वजह से पिता पुत्र का मिलान संभव हो सका और सीता जी ने धरती में में पुनः समाने का निश्चय कर धरती माता के पास चली गयी जिसके बाद राम जी ने सभी भाईयो के पुत्रों में राज्य का विभाजन कर वैकुंठ को चल पड़े ।







धन्यवाद ।

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