Maurya Vansh

मौर्य वंश

मौर्य वंश के संस्थापक कौन थे ? । मौर्य वंश के पहले सम्राट कौन थे ? । मौर्य वंश का प्रथम शासक कौन था ? । चाणक्य कौन था ? । चाणक्य का मौर्य वंश से संबंध किस था ? । मौर्य वंश के उत्तराधिकारी कौन-कौन हुआ ? । मौर्य वंश का शासन काल कब से कब तक रहा ?

मौर्य वंश भारतीय इतिहास का सबसे सफल पारिश्रमिक और अत्यधिक ऊर्जावान वंश है समस्त राजा महाराजा को अपने जीवन मे बहुत से कठिनाईयों का सामना करना पड़ा किन्तु मौर्य वंश एक ऐसा वंश है जिसकी स्थापना के लिए आचार्य  जिन्हें विष्णुगुप्त और कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है । तो चलिए इतिहास के उन पन्नो को खोलते है जिसमे नंद वंश का अंत हुआ और मर्या वंश की स्थापना किया गया ।




मौर्य वंश से पहले नंद वंश का साम्राज्य मगध पर था जिसका स्थापक महापद्मनंद को मन जाता है एक मत के अनुसार महापद्मनंद एक नाइ था जिसने छल पूर्वक नंद वंश की स्थापना मगध के पूर्व महाराज को मार कर किया था । महापद्मनंद के राजा बनने के पश्चात राज्य में बहुत सारे बदलाव आए कुछ समय बीतने के बाद धनानंद जो कि महापद्मनंद का पुत्र था उसने राज्य गद्दी पर अपना आधिपत्य स्थापित किया जिसके विषय मे मन जाता है कि वो अपने कई सामान्य दिखने वाले बहरूपियों के साथ रहता था जिससे दूसरे राजाओ को नंद वंश पर चढ़ाई करने में अत्यधिक परेशानी होती थी । धनानंद जो कि क्रूर राजा था जिसने जबरदस्ती बहुत सारे राज्य को अपने साम्राज्य में मिला रखा था इसी प्रकार नंद वंश की नया चल रही थी तभी एक लड़के का उदय हुआ जिसके आने से इतिहास का एक नया जीवनी लिखाने वाला था उस बालक का नाम विष्णुगुप्त था जो कि आगे चलकर चाणक्य और कौटिल्य के नाम से प्रशिद्ध हुआ । 322 बी सी ई से लगभग 15 वर्ष पूर्व चाणक्य तक्षशिला के शिक्षक हुआ करते थे जिन्होंने पश्चिम से आ रहे सिकंदर के तेज चाल को रोकने के लिए मगध के धनानंद से सहयोग की याचना की जिसके फलस्वरूप राजा ने आचार्य को बेइज्जत करते हुए अपने राज्य दरबार से निकल दिया जिसके पश्चात चाणक्य ने अपने चोटी को खोलते हुए प्रण लिया कि नंद वंश को जड़ से समाप्त कर एक नए राज्य का निर्माण करेंगे और एक ऐसे राजा को इस गद्दी पर बिठाएंगे जो प्रजा का शुभ चिंतक हो उसके पालन पोषण में हर प्रकार से ईमानदार हो अतः चाणक्य निकल पड़े उचित छमता वान राजा को ढूंढने जिसके फल स्वरूप एक गाँव मे एक बालक दिख जो मगध का भावी राजा होने का सारा गुण रखने लायक लगा ।






अतः आचार्य ने उस छोटे से बालक को अपने साथ तक्षशिला के गुरुकुल ले जा कर विद्या दान दिया और फिर मगध के राज्य को दयनीय अवस्था से बचने के लिए छोटे से बालक के साथ प्रयास रत हो गए चुकी बालक का नाम चंद्र था तो उससे चंदू कह कर भी पुकारा जाता था । चंद्रगुप्त को शिक्षित करने के लिए चाणक्य ने बहुत सारे ठोस कदम भी उठाया था जिससे चंद्र बहुत ही ताकतवर बुद्धिमान पुरुष बन चुका था बचपन से छापामार लड़ाई लड़ कर बहुत सारे ग्रामो को दोनों ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर आजाद करवा दिया था किंतु सिकंदर के बढ़ते हुए कदम जो कि सिंधु तक पहुच चुकी थी उससे रोकने के लिए एक मात्र झेलम के किनारे महाराज पुरुषोत्तम ही हिमत दिखा सके किन्तु सिकंदर की विशाल सेना के समकक्ष वो सम्भाल न पाए अंततः मगध से व निरासा मिलने के पश्चात उनकी पराजय हुई किन्तु मन जाता है कि सिकंदर ने आर्य पुरु को उनका राज्य उन्हें लौटा दिया किन्तु उसके बदले कर लेने लगा । इन सभी गतिविधियों से अवगत चाणक्य ने अपने शिष्य चंद्रगुप्त को सिकंदर के छावनी में भेष बदल कर जाने का आदेश दिया जिसके पश्चात चालाकियों और अखंडित होने वाले विश्वाश के दाम पर चाणक्य और चंद्रगुप्त ने सिकंदर और उसके थके हुए सैनिको के मन मे भारत के देवी देवताओं का भ्रम पैदा कर उन्हें लौटने को विवश कर दिया । जिसके उपरांत चाणक्य और चंद्रगुप्त अपने सहयोगियों के साथ नंद वंश के अंतिम शासक को राज्य गद्दी से हटाने के प्रयास में लग गए । 






सन 322 BCE  में  चंद्रगुप्त और चाणक्य दोनो सफल हो सके धनानंद को पराजित करने में जिसके उपरांत चंद्रगुप्त का राज्य अभिषेक किया गया और मन जाता है कि चंद्रगुओत की माता का नाम मुरा था जिसके नाम को चंद्रगुप्त के नाम में जोड़ करके चंद्रगुप्त मर्या कार्ड या चाणक्य ने उसके पश्चात धनानंद की इकलौती पुत्री के साथ जिसका नाम दुर्धरा था उससे चंद्रगुप्त का विवाह करवा दिया गया ।

अब राज्य और उसकी प्रजा खुश रहने लगी उसी काल मे सेल्युकस निकोटर की पुत्री से चंद्रगुप्त का विवाह करवाया गया जिससे दोबारा हमला न किया जाय मगध पर जिसकी राजधानी पाटलिपुत्रा को बनाया गया जो कि आज पटना के नाम से जाना जाता है । कुछ वर्ष पश्चात चंद्रगुप्त की पहली रानी दुर्धरा गर्भवती हुई जिससे खत्म करने के लिए दूसरी रानी जो कि यूनान की राजकुमारी थी उसने रानी के भोजन में विष मिला दिया जिसके उपरांत चाणक्य के कहने पर रानी के सिर को काट कर बच्चे को बचाने का एक मात्र प्रयास जो कर सकते थे उन्होंने किया अंततः बालक को बचा लिया गया परंतु विष अत्यधिक खतरनाक था जिसकी वजह से रानी को बचाना संभव नही सकता था कि वजह से रानी का अंत हो गया । बालक का नाम बिंदुसार रखा गया जो आगे चल कर अपने बड़े भाई जस्टिन जो कि दूसरे रानी का पुत्र था उससे पछाड़ राजा बन गया । चंद्रगुप्त मर्या का शासन 322 से 298 तक रहा जिसके उपरांत 298 से बिंदुसार 272 BCE तक शासन करने में सामर्थ्य राह सका किन्तु बिंदुसार को अपने पिता से बहुत कुछ मिला था जिससे सम्भालने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा परन्तु मन जाता है कि बिंदुसार के 100 पुत्रो में से एक अशोक ने महाराज का बहुत साथ दिया और बचपन से ही अपने शौर्य का प्रदर्शन कर राजा के दिल के करीब अपनी जगह बना चुका था किंतु268  में मन जाता है कि अशोक को अपने समस्त भाईयो को मार कर राज्यगद्दी संभालनी पड़ी  । 


 

अशोक के साम्राज्य में सभी खुश रहे दादा चंद्रगुप्त के जैन धर्म अपनाने के पश्चात मर्या वंश में अशोक ही ऐसा शासक बना जिसने महान साम्राज्य को विस्तार किया और अपने शिलालेखों से सभी को सत्कर्मो का संदेश दिया । कलिंग विजय के उपरांत अशोक ने अपने नीतियों में बदलाव लाया कहा जाता है कि कलिंग युद्ध मे हुए नरसंहार ने अशोक के हिर्दय में पुनः कोमलता का प्रवाह किया जिसके उपरांत अशोक प्रियदर्शी आशिक के नाम से भी जाना जाने लगा ।








To be continue.......

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